Sunday, October 12, 2008

Genius of Harivansh Rai Bachaan

Simple yet most powerful . A poem from one of the most romantic and revolutionary poet of modern Hindi Poetry.



रीढ़ की हड्डी / हरिवंशराय बच्चन विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से यहां जाईयें: नेविगेशन, ख़ोज ' रचनाकार: हरिवंशराय बच्चन





मैं हूँ उनके साथ,खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़ कभी नही जो तज सकते हैं, अपना न्यायोचित अधिकारकभी नही जो सह सकते हैं, शीश नवाकर अत्याचारएक अकेले हों, या उनके साथ खड़ी हो भारी भीड़मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़ निर्भय होकर घोषित करते, जो अपने उदगार विचारजिनकी जिह्वा पर होता है, उनके अंतर का अंगारनहीं जिन्हें, चुप कर सकती है, आतताइयों की शमशीरमैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़ नहीं झुका करते जो दुनिया से करने को समझौताऊँचे से ऊँचे सपनो को देते रहते जो न्यौतादूर देखती जिनकी पैनी आँख, भविष्यत का तम चीरमैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़ जो अपने कन्धों से पर्वत से बढ़ टक्कर लेते हैंपथ की बाधाओं को जिनके पाँव चुनौती देते हैंजिनको बाँध नही सकती है लोहे की बेड़ी जंजीरमैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़ जो चलते हैं अपने छप्पर के ऊपर लूका धर करहर जीत का सौदा करते जो प्राणों की बाजी परकूद उदधि में नही पलट कर जो फिर ताका करते तीरमैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़ जिनको यह अवकाश नही है, देखें कब तारे अनुकूलजिनको यह परवाह नहीं है कब तक भद्रा, कब दिक्शूलजिनके हाथों की चाबुक से चलती हें उनकी तकदीरमैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़ तुम हो कौन, कहो जो मुझसे सही ग़लत पथ लो तो जानसोच सोच कर, पूछ पूछ कर बोलो, कब चलता तूफ़ानसत्पथ वह है, जिसपर अपनी छाती ताने जाते वीरमैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़